लाइब्रेरी में जोड़ें

मदिरा सवैया




मदिरा सवैया

साजन के बिन आहत है, सजनी बस रोवत जागत है।
भागत है मन सांग पिया, नहिं ठौर कहीं वह पावत है।
सोचत है दिन रात यही, बस साजन राग अलापत है।
काटत वक्त नहीं कटता, नयना बस नीर बहावत है।

भूख नहीं लगती उसको, मन में बस साजन आवत है।
भोगत कष्ट सदा सजनी, तन क्षीण लगे दुख गावत है।
होय निराश हताश करे पर, क्या किससे वह बात कहे।
आंगन सून पड़ा बिखरा उर, रोग वियोग जुबान दहे।

रचनाकार: डॉक्टर रामबली मिश्र
९८३८४५३८०१

   13
5 Comments

Swati chourasia

02-Nov-2022 08:18 PM

वाह बहुत ही बेहतरीन रचना लाजवाब 👌👌👌👌👌👌

Reply

Muskan khan

02-Nov-2022 04:59 PM

Wonderful

Reply

Sachin dev

02-Nov-2022 04:30 PM

Nice 👌

Reply